ISRO का सबसे भरोसेमंद PSLV-C61 रॉकेट कैसे हुआ फेल? पूरी कहानी

ISRO का सबसे भरोसेमंद PSLV-C61 रॉकेट कैसे हुआ फेल


क्या आपने सुना कि भारत का सबसे भरोसेमंद रॉकेट, PSLV, जो चांद और मंगल तक पहुंच चुका है, हाल ही में असफल हो गया? जी हां, 18 मई 2025 को ISRO का PSLV-C61 मिशन फेल हो गया, और Earth Observation Satellite (EOS-09) अंतरिक्ष में सही जगह नहीं पहुंच पाया। यह खबर चौंकाने वाली है, क्योंकि PSLV को ISRO का "वर्कहॉर्स" कहा जाता है। आइए, इस रोमांचक कहानी को आसान शब्दों में समझें और जानें कि आखिर क्या हुआ, क्यों हुआ, और अब ISRO क्या करेगा। यह कहानी आपको बांधे रखेगी।


रॉकेट्स की कामयाबी और असफलता की लिस्ट



रॉकेट का नाम सफल आंशिक असफल असफल कुल सफलता % स्थिति साल
SLV-3 2 1 1 4 62.50% रिटायर्ड 1979-1983
ASLV 1 1 2 4 37.50% रिटायर्ड 1987-1994
PSLV 59 1 3 63 94.44% सक्रिय 1993
GSLV 11 2 4 17 70.58% सक्रिय 2001
LVM3 (GSLV Mk3) 6 0 0 6 100.00% सक्रिय 2017
SSLV 2 0 1 3 66.66% सक्रिय 2022
कुल 81 5 11 97 86.08%


PSLV-C61 रॉकेट: ISRO का सुपरस्टार


PSLV-C61, यानी Polar Satellite Launch Vehicle, ISRO का सबसे भरोसेमंद रॉकेट है। इसे 1993 में पहली बार लॉन्च किया गया था। तब से, इसने 63 मिशनों में सिर्फ तीन बार पूरी तरह असफलता देखी। यह रॉकेट सैटेलाइट्स को पृथ्वी की अलग-अलग ऑर्बिट्स में ले जाता है, जैसे Sun-Synchronous Polar Orbit, जो EOS-09 जैसे सैटेलाइट्स के लिए जरूरी है। PSLV ने 34 देशों के 345 सैटेलाइट्स लॉन्च किए हैं, जिनमें Chandrayaan-1, Mars Orbiter Mission, और Astrosat जैसे बड़े मिशन शामिल हैं। इसकी कामयाबी की वजह से इसे ISRO का सुपरस्टार कहा जाता है। लेकिन PSLV-C61 में क्या गलत हो गया?


EOS-09 मिशन का खास मकसद


EOS-09 एक Earth Observation Satellite था, जिसे पृथ्वी की तस्वीरें लेने के लिए बनाया गया था। यह सैटेलाइट खराब मौसम में भी काम कर सकता था, जो इसे बहुत खास बनाता था। इसका काम था सीमा सुरक्षा, आपदा प्रबंधन, और खेती में मदद करना। यह 524 किलोमीटर की ऊंचाई पर Sun-Synchronous Polar Orbit में जाना था, जहां से यह पृथ्वी के हर कोने की तस्वीरें ले सकता था। लेकिन इस मिशन की असफलता ने इन योजनाओं को रोक दिया।


लॉन्च में कहां हुई गलती?


PSLV-C61 मिशन 18 मई 2025 को सुबह 5:59 बजे श्रीहरिकोटा के Satish Dhawan Space Centre से शुरू हुआ। PSLV के चार स्टेज होते हैं, जो इसे अंतरिक्ष में ले जाते हैं। पहला और दूसरा स्टेज बिल्कुल ठीक काम किया। पहला स्टेज रॉकेट को शुरुआती धक्का देता है, और दूसरा स्टेज इसे और ऊपर ले जाता है। लेकिन तीसरे स्टेज में दिक्कत आ गई। ISRO के चेयरमैन वी. नारायणन ने बताया कि तीसरे स्टेज के इंजन में चैंबर प्रेशर अचानक कम हो गया। इससे रॉकेट को जरूरी स्पीड नहीं मिली, और EOS-09 सही ऑर्बिट में नहीं पहुंच पाया।

लॉन्च के छह मिनट बाद रॉकेट अपने रास्ते से भटक गया। तीसरा स्टेज, जो सॉलिड फ्यूल से चलता है, 114 सेकंड तक जलना चाहिए था। लेकिन प्रेशर कम होने से यह ठीक से काम नहीं कर पाया। चौथा स्टेज थोड़ा चला, लेकिन मिशन को बचा नहीं सका। रॉकेट 520 किलोमीटर की ऊंचाई तक पहुंचा, लेकिन उसकी स्पीड सिर्फ 4 किलोमीटर प्रति सेकंड थी, जो ऑर्बिट में जाने के लिए बहुत कम थी।


असफलता के पीछे क्या कारण?


ISRO ने अभी पूरी तकनीकी रिपोर्ट नहीं दी, लेकिन शुरुआती जांच में कुछ संभावित कारण सामने आए। हो सकता है कि तीसरे स्टेज के इंजन के नोजल में खराबी थी, जिससे प्रेशर लीक हो गया। या फिर, रॉकेट की बॉडी में कोई छोटी सी दरार थी, जिसने प्रेशर को बाहर निकलने दिया। एक और वजह हो सकती है कि कोई पार्ट बनाने में गलती हुई, जो लॉन्च के दौरान गर्मी और दबाव सहन नहीं कर पाया। यह भी हो सकता है कि गाइडेंस सिस्टम, जो रॉकेट को सही दिशा देता है, उसमें कोई दिक्कत थी। ISRO ने एक Failure Analysis Committee बनाई है, जो टेलीमेट्री डेटा और रिकॉर्ड्स की जांच करेगी और असली कारण ढूंढेगी।


PSLV की पहले की असफलताएं


PSLV का रिकॉर्ड शानदार रहा है। 32 सालों में यह सिर्फ तीन बार पूरी तरह फेल हुआ। पहली असफलता 1993 में PSLV-D1 मिशन में हुई थी, जो इसका पहला लॉन्च था। दूसरी बार 2017 में PSLV-C39 फेल हुआ। 1997 में एक बार आंशिक असफलता हुई, जब सैटेलाइट गलत ऑर्बिट में पहुंचा। इतने कम फेल्योर के साथ PSLV भारत का सबसे भरोसेमंद रॉकेट है। लेकिन EOS-09 की असफलता ने ISRO को सोचने पर मजबूर कर दिया, क्योंकि यह सैटेलाइट देश की सुरक्षा और आपदा प्रबंधन के लिए बहुत जरूरी था।


ISRO पर क्या असर पड़ेगा?


EOS-09 की असफलता से ISRO के कुछ प्लान्स रुक सकते हैं। यह सैटेलाइट सीमा सुरक्षा और आपदा प्रबंधन में मदद करने वाला था। अब इसकी देरी से ये योजनाएं प्रभावित हो सकती हैं। ISRO के पास Gaganyaan, Aditya-L1, और Chandrayaan-4 जैसे बड़े मिशन तैयार हैं। इस असफलता के बाद, ISRO शायद अपने टेस्टिंग प्रोसेस को और सख्त करेगा। चेयरमैन वी. नारायणन ने कहा कि वे पूरी जांच करेंगे और जल्दी ही डिटेल्स शेयर करेंगे। 

इसके अलावा, यह असफलता PSLV और GSLV जैसे दूसरे मिशनों को भी प्रभावित कर सकती है। जब तक समस्या का कारण और समाधान नहीं मिलता, ISRO कुछ लॉन्च टाल सकता है। इससे भारत का स्पेस प्रोग्राम थोड़ा पीछे हो सकता है, लेकिन ISRO का इतिहास दिखाता है कि वे हर मुश्किल से उबरते हैं।


ISRO का गौरवशाली इतिहास


ISRO ने भारत को अंतरिक्ष में बहुत आगे ले जाया है। 2014 में Mars Orbiter Mission के साथ भारत पहला एशियाई देश बना, जिसने मंगल की कक्षा में सैटेलाइट भेजा। Chandrayaan-1 ने चांद पर पानी के अणु खोजे, और Chandrayaan-3 ने चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग करके इतिहास रचा। PSLV-C37 ने एक साथ 104 सैटेलाइट्स लॉन्च करके विश्व रिकॉर्ड बनाया। ISRO ने 34 देशों के 345 सैटेलाइट्स लॉन्च किए और 439 मिलियन डॉलर कमाए। ये उपलब्धियां बताती हैं कि ISRO कितना मजबूत है, और एक असफलता उनके हौसले को कम नहीं करेगी।


अब आगे क्या?


ISRO की Failure Analysis Committee जल्दी ही इस असफलता का कारण ढूंढेगी। यह कमेटी टेलीमेट्री डेटा और लॉन्च रिकॉर्ड्स की गहराई से जांच करेगी। इसके बाद, ISRO अपने सिस्टम में सुधार करेगा ताकि भविष्य में ऐसी गलतियां न हों। EOS-09 जैसे सैटेलाइट्स भारत के लिए बहुत जरूरी हैं, और ISRO इस असफलता से सीखकर और मजबूत होगा। 

ISRO के अगले मिशन, जैसे Gaganyaan और Chandrayaan-4, दुनिया का ध्यान खींचेंगे। यह असफलता सिर्फ एक छोटा सा रुकावट है, और ISRO जल्दी ही नई कामयाबियां हासिल करेगा। 


निष्कर्ष


PSLV-C61 की असफलता ISRO के लिए एक झटका है, लेकिन यह उनके शानदार सफर का सिर्फ एक छोटा हिस्सा है। तीसरे स्टेज में प्रेशर की कमी ने EOS-09 को सही ऑर्बिट में पहुंचने से रोका, लेकिन ISRO की मेहनत और लगन इसे पार कर लेगी। भारत का स्पेस प्रोग्राम दुनिया में अपनी चमक बनाए रखेगा। ISRO की अगली उड़ान का इंतज़ार करो, क्योंकि वो फिर से इतिहास रचेगा!

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