पृथ्वी की आंतरिक संरचना - Internal Structure of The Earth
☞ आस्ट्रिया के भूगोल शास्त्री स्वेज ने पृथ्वी की आंतरिक संरचा को 3 परतों में बांटा है।
1. सिआल (SIAL)
2. सीमा (SIMA )
3. निफे (NIFE)
1. सिआल (SIAL)
☞ इस परत में Silica और Aluminium अधिकता में पाए जाते है। इस परत की चट्टानों में अम्लीयता अधिक होती है।
2. सीमा (SIMA )
☞ इस परत में Silica Magnesium की अधिकता होती है। इस परत की चट्टानों में बेसाल्ट और ग्रेबों की अधिकता रहती है।
3. निफे (NIFE)
☞ इस परत में Nickel और Iron होता है। इसी परत के कारण पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति (Magnetic Power) होती है।
☞ आधुनिक भूगर्भ शास्त्रियों ने पृथ्वी की आंतरिक संरचना को 3 परतों में विभाजित किया है-
1. भू-पर्पटी (Crust)
2. आवरण ( Mantle)
3. क्रोड (Core)
भू-पर्पटी (Crust)
☞ पृथ्वी के ऊपरी भाग को भू-पर्पटी कहते है।
☞ यह बहुत भंगुर ( Brittle) भाग है जिसमें शीघ्र टूटे जाने की प्रवृति देखी जाती है।
☞ यह अन्दर की तरफ 34 किमी तक का क्षेत्र है।
☞ यह बेसाल्ट चट्टानों से बना है।
☞ इसके दो भाग हैं- सियाल (Sial) और सीमा ( Sima )
☞ सियाल क्षेत्र सिलिकन और ऐल्युमीनियम से बना है।
☞ सीमा क्षेत्र सिलिकन और मैग्नेशियम से बना है।
☞ भू-पर्पटी भाग का औसत घनत्व 2.7 ग्राम है।
☞ यह पृथ्वी के कुल आयतन का 0.5 फीसदी भाग घेरे हुए है।
☞ इस परत को लिथोस्फीयर (Lithosphere) भी कहा जाता है।
आवरण ( Mantle)
☞ भू-पर्पटी के नीचे वाले भाग को आवरण कहते हैं।
☞ यह 2900 किलोमीटर की गहराई तक पाया जाता है।
☞ पृथ्वी के आयतन का 83% तथा द्रव्यमान का 67% भाग ही होता है।
☞ मैंटल का निर्माण सिलिका और मैग्नीशियम से हुआ है।
☞ मैंटल के ऊपरी भाग को दुर्बलता मंडल (Asthenosphere) कहा जाता है।
☞ दुर्बलता मंडल का विस्तार 400 किलोमीटर तक देखा गया है।
☞ यही भाग ज्वालामुखी उद्गार के समय धरातल पर पहुंचने वाले लावा का मुख्य स्रोत है।
☞ मैंटल का घनत्व 3.4 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर से अधिक होता है।
☞ निचला मैंटल ठोस अवस्था में होता है।
☞ इस परत को पाइरोस्फीयर (Pyro sphere) भी कहा जाता है।
क्रोड (Core)
☞ क्रोड को दो भागों में विभाजित किया जाता है वह
बाह्रय क्रोड (Outer core)
आंतरिक क्रोड (Inner core)
☞ बाह्रय क्रोड तरल अवस्था में होता है जबकि आंतरिक क्रोड ठोस अवस्था में होता है।
☞ मैंटल व क्रोड की सीमा पर चट्टानों का घनत्व लगभग 5 ग्राम प्रति घन सेंटीमीटर होता है।
☞ केंद्र में 6300 किलोमीटर की गहराई तक घनत्व लगभग 13 प्रति घन सेंटीमीटर तक हो जाता है।
☞ क्रोड का निर्माण निकल व लोहे से होता है।
☞ इससे निफे (Nife) भी कहा जाता है।
☞ इस परत को बैरीस्फीयर (barysphere) भी कहा जाता है।
गुरुत्वाकर्षण
☞ पृथ्वी के धरातल पर भी विभिन्न अक्षाशों पर गुरुत्वाकर्षण बल एक समान नहीं होता है।
☞ पृथ्वी के केंद्र से दूरी के कारण गुरुत्वाकर्षण बल ध्रुवों पर कम और भूमध्य रेखा परअधिक होता है।
☞ पृथ्वी के अंदर पदार्थों का असमान वितरण भी इस भिन्नता को प्रभावित करता है।
☞ विभिन्न स्थानों पर गुरुत्वाकर्षण की भिन्नता अनेक अन्य कारकों से भी प्रभावित होती हैं।
☞ इस भिन्नता को गुरुत्व विसंगति ( Gravity Anomaly) कहा जाता है। - गुरुत्वाकर्षण विसंगति भू-पट्टी में पदार्थों के द्रव्यमान के वितरण की जानकारी देती है।
☞ चुंबकीय संरक्षण भी भूपति में चुंबकीय पदार्थों के वितरण की जानकारी देते हैं।
भूकंपीय तरंगे
☞ भूकंप मापी यंत्र (seismograph) सतह पर पहुंचने वाली भूकंपीय तरंगों को प्रकट करता है।
☞ भूकंपीय तरंगे दो प्रकार की हैं भूगर्भिक तरंगे और धरातलीय तरंगे ।
☞ उद्गम क्षेत्र से ऊर्जा विमुक्त होने के समय भूगार्भिक तरंगे उत्पन्न होती हैं।
☞ भूगर्भिक तरंगों एवं धरातलीय शैलों के मध्य अन्योन्य क्रियाओं के कारण नई तरंगे उत्पन्न होती हैं जिन्हें धरातलीय तरंगे कहां जाता है।
☞ यह धरातलीय तरंगे धरातल के साथ साथ चलती हैं।
☞ भूगर्भिक तरंगे भी दो प्रकार की होती हैं P तरंगे तथा S तरंगे ।
☞ P तरंगे तीव्र गति से चलती हैं तथा धरातल पर सबसे पहले पहुंचती हैं।
☞ P तरंगे गैस, तरल व ठोस तीनों प्रकार के पदार्थों से होकर गुजर सकती है। तरंगे धरातल पर कुछ समय पश्चात पहुंचती हैं। -
☞ S तरंगे केवल ठोस पदार्थ के ही माध्य से चलती हैं।
☞ तरंगों की इन्हीं विशेषताओं के विश्लेषण से वैज्ञानिकों को पृथ्वी के आंतरिक भाग को जानने में मदद मिली है।
ज्वालामुखी
☞ ज्वालामुखी मुख्यतः ज़मीन में वह स्थान होता है, जहाँ से पृथ्वी के बहुत नीचे स्थित पिघली चट्टान, जिसे मैग्मा कहा जाता है, को पृथ्वी की सतह पर ले आता है।
☞ मैग्मा ज़मीन पर आने के बाद लावा कहलाता है, लावा ज्वालामुखी में मुख पर और उसके आस पास बिखर कर एक कोन का निर्माण करती है।
☞ किसी भी ज्वालामुखी को तब तक जीवित माना जाता है जब तक उसमे से लावा, गैस आदि बाहर आता है।
☞ यदि ज्वालामुखी से लावा नहीं निकलता है तो उसे निष्क्रिय ज्वालामुखी कहते हैं, निष्क्रिय ज्वालामुखी भविष्य में सक्रीय हो सकती है।
☞ यदि कोई ज्वालामुखी 10,000 वर्षों तक निष्क्रिय रहती है तो उसे मृत ज्वालामुखी कहा जाता है।
☞ किसी ज्वालामुखी की विस्फोटकता, मैग्मा के उत्सर्जन गति, और मैग्मा में निहित गैस की उत्सर्जन गति पर निर्भर करती है।
☞ मैग्मा में बहुत अधिक मात्र में जल और कार्बनडाइऑक्साइड मौजूद होता है, एक सक्रिय ज्वालामुखी से मैग्मा निकलते हुए देखने पर पता चलता है कि इसकी गैस उत्सर्जन की क्रिया किसी कार्बोनेटेड पेय से गैस निष्काषन की क्रिया से मिलती जुलती है।
☞ डाइक एक ज्वालामुखी निर्मित आन्तरिक स्थलाकृति है। - ऑस्ट्रेलिया महाद्वीप में एक भी ज्वालामुखी नहीं है।
☞ 'पेले अश्रु' (Pale's Tear) की उत्पत्ति ज्वालामुखी उद्गार के समय होती है।
☞ ज्वालामुखी में जलवाष्प के अलावा मुख्य गैसें होती हैं कार्बन डाइआक्साइड, हाइड्रोजन, नाइट्रोजन
☞ विश्व के अधिकांश सक्रिय ज्वालामुखी नवीन मोड़दार पर्वतीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
☞ प्रशान्त महासागर के चारों तरफ स्थित ज्वालामुखी की पेटी को अग्नि श्रृंखला कहा जाता है।
☞ लम्बे समय तक शान्त रहने के पश्चात् विस्फोट होने वाला ज्वालामुखी सुसुप्त ज्वालामुखी कहलाता है।
☞ ज्वालामुखी 'प्रकृति का सुरक्षा वाल्व' कहा जाता है ।
☞ ज्वालामुखी की सक्रियता जापान में अधिक पायी जाती है।
☞ किलायू संसार का सर्वाधिक सक्रिय ज्वालामुखी है।
☞ ऑक्सीजन ज्वालामुखी उद्भेदन के समय नहीं निकलती है।
☞ विश्व का सबसे ऊँचा सक्रिय ज्वालामुखी कोटोपैक्सी है जो इक्वेडोर में है।
☞ मृत ज्वालामुखी किलिमंजारों तंजानिया में स्थित है।
☞ फ्यूजीयामा जापान का ज्वालामुखी पर्वत है।
☞ स्ट्राम्बोली ज्वालामुखी को भूमध्य सागर का प्रकाश स्तम्भ (Light House of the Mediterranean Sea) कहा जाता है।
☞ ज्वालामुखी के मुख को क्रेटर कहते है।
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